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Vinayak Ranjan

Abstract Inspirational

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Vinayak Ranjan

Abstract Inspirational

जड़-ममत्व्..

जड़-ममत्व्..

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मैं अदृश्य हूँ..

मुझे मत देखो..

देखना है तो मेरे उन द्रव्यों को देखो..

फल हैं.. फूल हैं..

हरी पत्तियां है।

मेरी शिखाऐं भी हैं..

आओ थोड़ा झूल जाओ..

खुद को थोड़ा भूल जाओ..

कुछ तो मेरे जैसे बन जाओ..।


खुद को ना भुलाता तो क्या देख पाते..

ये अभिनव श्रृंगार ..

नित-नित नए प्रकार..।

मैं गर्भ में स्थीर हर दिन लिए एक नवीन आविष्कार..।

बांधो न तुम मूझे अपने मोह-पाश में..

मेरा जीवन तो है बस जठर आकाश में..


न रंग..

न रूप..

न काया है अपनी..

रह मचलता हूँ..

बस छाया में अपनी।

…हाँ ..अब तो वर्षों बीते..

दिखता नहीं कुछ दिखाने को अपनी..

मैं ही दिखने लगूं तो क्या फिर कुछ देख पाओगे..

अपने-अपने जीवन के तेज को क्या पकड़ पाओगे!


मुझे मौन ही रहने दो..

मैं ही जड़ हूँ।


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