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Sandeep Kumar

Abstract

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Sandeep Kumar

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वह पगली मुझे पिंजड़े में कैसे कैद किया है

वह पगली मुझे पिंजड़े में कैसे कैद किया है

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उस गली के तिनका तिनका हमें जानने लगा है

हर ख़ामोशी को पढ़ पढ़ कर समझने लगा है

आते हैं क्यूँ हम उस गली में प्रतिदिन दो चार

यह राज अपने में गली गुनगुनाने लगा है।।


तन मन के नयन, नयन को पुकारा रही है

छिपी हो क्यों चार दीवारी में सवाल किया है

नहीं आने के मकसद पर बवाल किया है

धिक्कार रहा है गली, गली विचार किया है।।


हैरान परेशान कर के व अंधकार किया है

वह पगली मुझे पिंजड़े में कैसे कैद किया है

तड़पता छड़पता भ्रमता बस आ जा रहा हूं

नाम उसकी होठों से बस गुनगुना रहा हूं।।


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