STORYMIRROR

Chanda Prahladka

Abstract

4  

Chanda Prahladka

Abstract

अजनबी

अजनबी

1 min
409

शहर अन्जान था,अजनबी रास्ते,

बिखरे टुकड़े समेटे अरमानों के,

सेज काँटों की,मन को रहे साधते,

कदम दर कदम, प्यार के वास्ते।


उलझने भरके दामन में प्रतिपल सहे,

वेदना ,पलकों से अश्रु धारा बहे ,

बह गये ख़्वाब के शामियाने कई,

टूटते तारे अंजान से हँस पड़े।


दोस्त अन्जान बन गुम होते गये,

बरफ सी ज़िंदगी यूँ फिसलती गई,

बाद मुद्दत के पहचान खुद से हुई,

अपनी परछाई भी जब दगा दे गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract