होली
होली
अपने ही रंग में रंग लो ओ प्रियतम,
उमंगों तरंगों से भींगा है तन मन,
कोरी रहे ना मोरी धानी चुनरियाँ,
अंतस्तल में पाऊँ सुनहरी डगरिया ।
बिखेरे दिगंत अबीर गुलाल सखी री,
ढोल अद्भुत मृदंगों की तान सखी री,
गुलाबों सी सुर्ख़ लाल गात हो रंगी,
मकरंद परागों सा बन के सतरंगी।
संप्रीत का रंग भावों की पिचकारी,
दूर अंतर कलुष अब ख़ुशियों की बारी,
धरा और अंबर पर सजती रंगोली,
उर आँगन यूँ निखरा आई जो होली।
ढोलक की थापों पे पग आज थिरकते,
बजे रुनझुन पायल ज्यूँ बादल बरसते,
कहीं फागों की तान छेड़े ओ रसिया,
मृदु प्यारी सी बोली भाये मन बसिया।
भीगे से नज़ारे है रंगीन मौसम,
जित भी मैं जाऊँ तुमको पाऊँ प्रियतम,
तुम छेड़ो न मुझको लिए केसरी रंग,
मैं कित जाऊँ अब पी के मदहोश भंग।
चिंतन निराला सुहाना है अंतर तल,
जो धारा बहे नेह की पावन निर्मल,
नफ़रत रहे ना कोई दुर्भाव कटुता,
रंगों गुलालों में रहे केवल समता।