STORYMIRROR

Chanda Prahladka

Abstract

4  

Chanda Prahladka

Abstract

स्पन्दित भाव।

स्पन्दित भाव।

1 min
571

जब साँवली तन्हां रातों में,

उजले से चाँद की बाँहों में,

एक नूर चमकता तारों में,

कह जाता मूक इशारों में।


धड़कन में स्वप्न पराग बसा,

प्रिय,नवजीवन संचार हुआ।

पुलकित श्वासों का मधुमेह,

चंचल सजनी होती हैं पास।


पलकों की छुअन लिये भोर,

सुधि खेंच बांध गई करूण छोर।

बिन साज नुपूर झंकृत क्षण-क्षण,

सौंदर्य निहारें पुलकित मन।


इन्द्रधनुष सा रूप निरंतर,

सतरंगी रंग खूब बिखेरे।

स्पन्दन भावों की छलकन,

बादल बन बरसात उकेरे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract