अहसास
अहसास
जो हो सके लफ़्ज़ों में पिरोते रहे
पर पढ़ता कौन,
कुछ जज़्ब - ए - दिल गुनगुनाते रहे
पर सुनता कौन,
"अहसास” हमारे
हम से ही हो गए सरफ़रोश दीवाने
पत्थर भी पड़े, ज़ख़्मी भी हुए
पर रोता कौन,
बंद मुट्ठी में लिए ख़ामोशी
और खुली आँखों में तन्हाई
पूछते रहे सवालों के जवाब
पर बताता कौन,
वजूद पर अपने न रहा इत्तिफ़ाक
फलक से गिरा जो ज़मीन पे,
ख़ाक - ए - चाँद ही सही
पर उठाता कौन,
दरमियाँ रह गया कुछ बाक़ी
अहले दिल रफ़ीको में
जिगर - ए - चाक के रिश्ते हैं
पर निभाता कौन,
आज़ाद हुए कफ़स से
तो सैय्याद का दिल आया
उड़ना भी चाहा अब
पर उड़ाता कौन,
बड़े दूर आ गए
सफ़र -ए- ज़िंदगी में हम
होंठ काँपे थे बुलाने को
पर बुलाता कौन,
"अहसास” हमारे
हम से ही हो गए सरफ़रोश दीवाने।