अहम
अहम
सबको तो अहम ने मारा है
सबको ख़ुद के वहम ने मारा है
मौत ने तो बस इनका किया,
इस दुनिया से छुटकारा है
आज सब अहं में मरते है
सबको सांप बन डसते है
लोगों को जहर ने नहीं,
अहं के कहर ने मारा है
अहंकारी ख़ुद को ख़ुदा समझते
दूसरे सबको चींटी समझते है
अहंकारी अहं में हुआ बेचारा है
टूटा गया सबसे ही भाईचारा है
पर अहं में जीने वालों को
कभी न मिलता किनारा है
अंत में उसके पास साखी,
किसी का न होता सहारा है
