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Aishani Aishani

Abstract

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Aishani Aishani

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अगर मैं तुम्हारी तरह..!

अगर मैं तुम्हारी तरह..!

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(1) 

अगर मैं तुम्हारी तरह होती, 

सारा इलज़ाम दूसरों को देती। 

अपने दोषों को नहीं देखती कभी, 

सारी ख़ामियाँ ग़ैरों में ढूँढ निकलती।


(2) 

शुक्र है तुम सा नहीं हूँ मैं

मुझे मुझ सा ही रहने दो..! 

कोई मिले जो बेहतर हो मुझसे

तुम उसको अपना सर्वस्व मान लेना! ! 




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