अगर आप
अगर आप
अगर आप ठीक से
देख रहे हैं अपने परिवेश को
तो निष्प्रयोज्यता में प्रयोज्य का
उद्भव हो रहा है
शरीर की पृथ्वी पर
उतने ही प्रदूषण हैं जितने पृथ्वी पर
जिन परिस्थितियों से
पृथ्वी की गुजर रही है
शरीर पर उसका उसी तरह का
प्रभाव पड़ रहा है
आकस्मिक तूफान आ रहे हैं
तो नयी नयी बीमारियां भी हैं।
पृथ्वी बचायें
पर पहले शरीर बचायें
जीयें पृथ्वी बचाने के लिये
प्रकृति के साहचर्य बनाये रखने का
यही एक रास्ता है
एक सपना सा है पर है
पृथ्वी प्रदूषण मुक्त हो रही है
शरीर स्वस्थ हो रहा है
शांति कायम हो रही है।
