अग्नि पथ--दो शब्द
अग्नि पथ--दो शब्द
अग्नि पथ--दो शब्द
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हर पल बदलता है समय का चक्र
कभी सीधा, कभी टेढ़ा और कभी कभी वक्र -
हर कदम है मुश्किल तेरा संभल कर चल,
जिंदगी की कटीली राह से गुजरता जीवन का रथ-
अग्नि पथ--अग्नि पथ-अग्नि पथ-
संबधो की डोर खींचतीं है-
प्यार की धारा भी तेरी राह सींचती है-
माना डगमगाते कदमों को भी कभी कभी थाम लेते हैं लोग-
पर छोड़ कर सहारे भी अक्सर भाग लेते हैं लोग -
यह दुनिया इतनी भी आसान नहीं-
कौन है जिसकी राह में यहां व्यवधान नहीं -
एक दूसरे को गिराने में यहां हैं सभी रत-
अग्नि पथ--अग्नि पथ-अग्नि पथ-
फेंक कर तेरे सामने दो रोटी-
करते हैं उपभोग शरीर का समझ कर बोटी-
स्वार्थ के रथ पर हैं सभी आसीन हो जाते यहां -
कभी धर्म, कभी कर्म और कभी कभी
जाति के नाम पर शीश चढ़वाते यहां -
कहीं प्यार है, कहीं अधिकार है-
कहीं रूदन है तो कहीं पुकार है-
कभी गले से लगाता, कभी करता तिस्कृत-
कभी यादों में बसाता, कभी करता विस्मृत-
जिन्हें समझा था अपना
वही कुचल कर सफलता के शिखर पर चढ़ जाते हैं-
मेहनत कस और सच्चाई का दामन थामे
अक्सर वेबस से नजर आते है-
अपने लिए नहीं बस दूसरों के लिए ही सिद्धांत हैं
यह मत कर, वह मत कर-
अग्नि पथ--अग्नि पथ-अग्नि पथ-
सूर्य सा तप्त जीवन का समय चक्र -
कभी वारिस की बूंदों से भींगता होता तृप्त -
कभी पढ़ना है मुश्किल समुद्र की उछाल को-
बांधना है आंसान कहां मन के सबाल को-
कहीं टूटते हैं सपने, छूटते हैं अपने-
कहीं लोग मदहोश से, खोते हुए होश से-
सत्य की खोज में अमृत निकाल कर मथ-
अग्नि पथ--अग्नि पथ-अग्नि पथ-