अधूरे ख़्वाब
अधूरे ख़्वाब
जुगनुओं की तरह
टिमटिमाते हैं
क़ुछ अधूरे ख्वाब
रात भर,
पानी में झाँकती
चाँद क़ी परछाइयों
क़ो छूने को बेताब
यह रहगुज़र,
उन्मुकत सा है ये
चलता है, गिरता है,
फिर संभलता है,
नहीं है इसे कल की
कोई फ़िक़र,
हक़ीक़त का सूरज
पलकों में बंद
उन ख़्वाबों को,
फिर से दिखाता है
उम्मीदों का नया सहर।