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Pari P

Abstract

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Pari P

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चाहत ज़िंदगी क़ी

चाहत ज़िंदगी क़ी

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काश ! 

किसी ने बचपन में सिखाया होता,

ज़िंदगी,


पेचीदा पहलू का दूसरा नाम है

दर बदर हज़ारों इंतहाम है,

उलझनो से भरा मुक़ाम हैं,

ना जाने क्यूँ,


हम उतावले हो जाते हैं

जबकि हमारा,

ख़्वाबों पर भी ना कोई इख़्तियार हैं,


अगर

जवानी या अधेरपन बस यूँ ही 

बचपना सा होता

फिर.. ज़िंदगी का कुछ अलग ही

रंग होता,


ना कोई शिकवा, ना कोई रंज

ना कोई गिला होता।


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