अधरी सफ़र
अधरी सफ़र
फ़िर एक बार खो जाऊं, तेरे प्यार में इस तरह
काया में साया अपनी, अंधेरे में जिस तरह ।।
जैसे बादलों में रहती है, अणु आब का गुमशुदा
गुप्तगू खुश्बुओं का ,हवाओं से जिस तरह।।
चमक में अफताब का, दमक उष्म का हो जैसी
चाँद के चाँदनी में भी ,समाई शीत की तरह ।।
ठहरी हुईं जो सितारें, आसमाँ के अंग में देखो
खिसक जाती हो तुम क्यों, खोई चाँदनी की तरह।।
मुकम्मल क्यों न कर लूँ , मुरझी हुई ख्वाहिशों को
लफ़्ज़ों में सुलझा तो लूँ , कोई बंदिश की तरह।।
न होने में भी होने का, एक एहसास सा हो तुम
लेकिन लगती हो तुम कोई , अनबूझी प्यास की तरह ।।
तलाशें समेट ली लेकिन ख्वाहिशें सिमटी नहीँ
ज़िंदगी है एक सफ़र, मगर अधूरी की तरह।।