umesh kulkarni

Inspirational

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umesh kulkarni

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अच्छे दिन

अच्छे दिन

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अच्छे दिन आये हैं या नहीं

बहस ख़तम होता ही नहीं


चलो आज एक कहानी सुनाता हूँ

सच्ची घटनाओं पर आधारित रखता हूँ


एक गाँव में रहता था एक बे-चारा लालू

और रहती थी साथ में उसकी बीवी शालू


गाँव को पीछे छोड़ निकला शहर की ओर

हर कूचे हर मोड़ लगाए दोनों बड़े जोर


खूब मेहनत करता था वो

अच्छा खासा कमाता था वो


जल्द ही लिया उसने एक रिक्शा

जुड़ गई दो बेटियाँ शिक्षा और दीक्षा

 

लालू से लालू सेठ बन गया था वो

औरों के आँखों का नूर बन गया था वो


अब ऊँचों में बैठने उठने लग गया वो

दिन रात ताश और नशा करने लग गया वो


घर में बीवी बच्चे परेशां रहते

लालू सड़क पे नशे में पड़े रहते


हँसता खेलता कुटिया था उसका

जीवन नरक बन गया था सबका


शालू घर में करने लग गई सिलाई

झाड़ू पोछा और बर्तन धुलाई


फिर आई नई सरकार

साथ लायी नई अचार और विचार


नशे में गाड़ी चलने के नियम हुए बड़े सख्त

लाइसेंस जप्त और पांच हज़ार का जुर्माना हर वक़्त


एक बार लालू पीकर आ रहा था

बीच सड़क में पुलिस से भिड़ गया था


लगा पूरे पांच हज़ार का जुर्माना

दे मारा पूरे पैसे - उसमे क्या घबराना


दो तीन बार सिलसिला ये रहा चालू

परेशां हो गया अपना बेचारा लालू


अब वो हो गया था बड़ा कंगाल

शराब और फाइन ने किया उसका बुरा हाल 


बेचारा लालू फिर से काम पे जाने लग गया

कारीगर अच्छा था मन लगाके काम में लग गया


जल्द ही चार और रिक्शा लिए उसने

किये हुए वादे निभाने लगा गया उसने


देखते देखते देखने वाले पूछने लग गए नुस्खे

विश्वास न हो इतने दिन पलट गए उसके


दारू छूटी अब वो ढंग से रहने लग गया

दारू से दूर रहने का हिदायत देने लग गया


अब शराबख़ाने वाले सरकार से कर रहे हैं गुहार

नशे में चलाने वालों को को इतना न करो बेजार


लालू की तरह गर और लोग करने लगे सत्संग

हम होंगे बर्बाद अपने बीवी बच्चों के संग


दुकान के लिए ख़र्चा है रुपये करोड़ों

चलाने के लिए देते है हफ्ता वो अलग से जोड़ो


किसी के लिए बुरे दिन तो किसी का बोल बाला

चित और पट एक साथ कैसे होंगे भला


अच्छे दिन हैं या नहीं अपनी अपनी सोच है

दिन बदले ज़रूर हैं ये बात निस्संकोच है


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