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Kunal kanth

Abstract

4.5  

Kunal kanth

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अभी बांकी है

अभी बांकी है

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मंजर मौत का अभी बांकी है 

कुछ खोया कुछ पाया मगर 

चाहत का सिलसिला जारी है


मुमकिन केहना आसान तुम्हारे लिए

ये गजल ये नज्म़ बस नथी कागजी है 


खौफ नहीं दर्द का, रोए चेहरे का तुम्हें 

आंसू से लिपटे यादें हर पहर की कहानी है 


टुच्चै से तो लग रहे तुम ऐ नादाँ परिंदे

तुमने कहां देखी पूरी बाकीं अभी जिंदगानी है


रहम का कफ़न भी सोने के मोल से बराबरी 

साँसो का दस्ता जहर का सुनामी है


रख रहे जिससे नाता गहरा 

वो जहरीली ज़ख्म की प्याली है


यूँ हीं नहीं बना लेखक मैं 

चीखों से लिखी मेरी कहानी है 


मंजर मौत का अभी बाकी है 

कुछ खोया कुछ पाया मगर 

चाहत का सिलसिला जारी है।


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