अब तो शाम ढल चुकी है
अब तो शाम ढल चुकी है
अब तो शाम ढल चुकी है
अमावस है चाँद भी मुया गायब है कहीं
और आजकल नज़रें दूर तक नही देख पाती
नही तो सितारें गिनके रात (जिंदगी) काट लेते
किसी ने कहा भी ना था
ये खामोश लम्हे जख्म कुरेदती है
आंसुओ के बदले सूखे हुए लहू निकलते हैं
भूल गया कभी बरसात भी होती थी
नही तो बून्द बून्द इकट्ठे करके कबके अमीर बन जाते।