आज़ादी
आज़ादी
जिसने अपनी आँखों मे आजादी का स्वप्न सजाया था,
बो भारत माँ की खातिर सारे रिस्ते तोड़ के आया था।
जिसने अपनी तान पे देखो सबको नाच नचाया था,
चूम के फांसी का फंदा जिसने वन्देमातरम गाया था।
ब्रिटिश सेना नाम से जिसके थर थर थर्राती थी ,
कदम रखे जो धरनी में तो गुज अम्बर तक जाती थी।
भारत माँ को आजाद कराने की जिसने कसम उठाई थी,
नाम था उसका भगत सिंह माता आजादी बतलाई थी।।
जिसने माँ को लहू से सींचा गीत उसी के गाऊंगा
भुला दिया था तुमने जिसको बात बही बतलाऊँगा
कैसे माँ आजाद हुई तुमको आज बताऊंगा ।।
आजादी के मतवालों को अंग्रेज सताया करते थे,
कभी काट के चमड़ी उसमे नमन मिर्च भुरकते थे।
कभी आँख में गरम शूल चुभाए जाते थे,
जब तक जान जिस्म में रहती तक सहते जाते थे।
माना बो अपनी मौत का अंदेशा पा जाते थे
ओर मरते मरते ही सब मिलकर बंदेमातरम गाते थे
जो क़ुर्बान हुए भारत पर उनका ब्रतांत सुनता हूँ
भुला दिया था तुमने जिसको बात बही बतलाता हूँ
लाखो को खोया हैं ,तब ए नेमत पाई हैं,
अशफाक, भगत, आजाद की बो कुर्बानी काम आई हैं।
छिड़क के सोणित माता की चुनरी सजबाई हैं
अर्धसत्य बात है ए जो तुमको मतलाई हैं
खादी, गांधी ,चरखा लाडी थप्पड़ से आजादी पाई हैं
सच तो ए हैं यदि भगत सिंह सा कोई दिलसाद नही होता
तो सिर्फ अहिंसा के दम पर भारत आजाद नही होता ।।
जिसने माँ को लहू से सींचा गीत उसी के गाऊगा
भुला दिया था तुमने जिसको बात बही बतलाऊँगा
कैसे माँ आजाद हुई तुमको आज बताऊंगा ।।
