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आज़ादी का दीवाना भगत सिंह

आज़ादी का दीवाना भगत सिंह

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आज़ादी का दीवाना था भगत

आज़ादी का परवाना था भगत

आज़ादी का मस्ताना था भगत

आज़ादी की खातिर सहे जाने कितने

सितम जेल में

आज़ादी की खातिर चढ़ गए हँस कर

वो परवाने फांसी पर

जी सके हम सब भारत वासी आज़ादी से

इसकी खातिर नही की अपनी

जान की परवाह

ऐसे थे आज़ादी के वो दीवाने जिसकी

खातिर घर बार सब छोड़ दिया रिश्तो को

अपने भूल गए वो

एक ही रिश्ता याद रखा वो

जो था देश से धरती माँ से....

आज अगर तुम जिंदा होते

देश की राजनीति से दुखी होते

हर और है भ्रटाचार हर

और है छींटाकशी

रो रहा है हर नेता अपनी

अपनी कुर्सी को

है प्यारी उनको अपनी कुर्सी

नही परवाह जनता की

काश तुम जो जिंदा होते

होता कुछ इतिहास अलग

होता भारत पर फिर सब को नाज़

कश अगर तुम जिंदा होते

कुछ उम्मीदे हमको भी होती

की मेरे देश का नाम ना ले कोई

भ्रस्टाचार का वास वहाँ कह कर


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