आज़ाद गज़ल
आज़ाद गज़ल
किसी तारीफ़ का हूँ मै मोहताज नहीं
लोग करेंगे कल ज़रूर,भले आज नहीं ।
नयी सोच अपनाने में वक़्त तो लगता है
यकमुश्त ही बदलते रस्मों रिवाज़ नहीं ।
जाने कितने फनकार गुजरे गुमनाम ही
झेल सका जिनको कभी ये समाज नहीं ।
अंजाम मोहब्बत का था इल्म पहले ही
आरज़ू तो की मगर किया आगाज नहीं
कितने मतलबपरस्त हो तुम भी अजय
अपनी गज़लों पर किया कभी नाज़ नहीं