आसमां कुछ बोल
आसमां कुछ बोल
क्या कम हो रही है, तेरे सितारों की संख्या
जो चुराने लगा तू ,जमीं की भी जनसंख्या।
हाँ! सपना है सभी का, चाहे पहुँचना चांद तक
न बनना हमें तेरा तारा, बस लौट आये शाम तक।
आसमां कुछ बोल ना, आज धरा ये पूछ रही है
हाहाकार! मच गया, रक्त के अश्रु ये चीख रही है।
गिन एक बार फिर से तू, गड़बड़ तो नहीं तेरी गणना
आने दे फिर वही आंकड़े, कर लूँ मैं फिर से जनगणना।
