आसक्ति
आसक्ति
विषय का ध्यान आसक्ति बढ़ाता
आसक्ति से होता काम निर्माण
काम की पूर्ति जब हो नहीं पाती
क्रोध में आता तब इंसान
मोह बढ़ जाता तब विषय के प्रति
भ्रमित होता तब इंसान
बुद्धि का नाश हो जाता उसकी
किसी काम न रहता तब इंसान।।
बिन बुद्धि के क्या कर सकता वो
भटकन में होता तब इंसान
मन की शांति भंग हो जाती
तब सर्वनाश के द्वार पर हो इंसान।।
विषय का चिंतन जो छोड़ दे बंधु
सुख शांति होती उसके द्वार
प्रेम, दया की भावना ह्रदय जगती
सोना-मिट्टी सब एक समान।।