STORYMIRROR

Kanchan Prabha

Abstract

3  

Kanchan Prabha

Abstract

आशना है मुझसे मेरा दिल

आशना है मुझसे मेरा दिल

1 min
301

जब आशना है मुझको मेरा दिल गहराइयों तक 

तो इसमें दर्द क्यों पनपते हैं?


पैरों की शान बन बैठी, घुंघरु टूटते भी हैं एक दिन

तो पायल छनकते क्यों हैं?


बड़ी तेज तपिश है सूरज की, मालूम है उसकी तपन

तो ये आग दहकते क्यों हैं?


मोम जाने अपनी औकात कि फर्श पर ढल जाना है

तो ये मोम पिघलते क्यों हैं?


अपरिचितों की बात नहीं, जब दोस्ती है मेरी उससे

तो रंजिशें निकलते क्यों हैं?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract