आशिक़ी
आशिक़ी
लिखावटों से दूर,
आज अल्फाजों में उतरना है,
आशिक़ी की थी एक बार हमने,
आज आशिक़ी में हीं ढलना है।
पास जा उसके,
हम भूल चुके हैं माज़ी को,
उस चांद की चांदनी में,
वापस सोना है हमको,
गलियों से उसके,
फिर एक बार गुजरना है,
बाहों में जाकर उसके मदहोश,
खुद को करना है।
आशिक़ी की थी एक बार हमने,
आज आशिक़ी में ही ढलना है।
जुल्फें उसकी सवार सकूं,
यही मौका एक चाहिए,
मुस्कुराहट पर उसकी,
दिल कुर्बान होना चाहिए,
अपनी तस्वीर उसकी,
आंखो में अब डालना है,
उसके चेहरे के नूर को,
कैद यू हीं करना है,
आशिक़ी की थी एक बार हमने,
आज आशिक़ी में ही ढलना है।
दूरियां बस उसकी नज़दीकियों में सिमट जाएं,
पास बैठकर साथ हम कुछ कहानियां लिख जाएं।
तेरा ना होकर महसूस तुझे ही करना है,
लिखावटों से दूर आज अल्फाजों में उतरना है।
आशिक़ी की थी एक बार हमने,
आज आशिक़ी में ही ढलना है।

