आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपकी नज़रो से कोई बात छुपाए भी तो कैसे?
नूर आपकी आँखों का, मुझे बेचैन सा करता है,
होश में रहकर, बेहोश सा करता है,
हैं गहरा समंदर, जादुई दुनिया का,
इसमे मुझे लेकर, मदहोश सा करता है।
आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपकी नज़रो से कोई बात छुपाए भी तो कैसे?
आप खुदा की दी, अज़ीज़ इनायत हैं,
ख्वाबो में सिर्फ पाना आपको, एक अजीब सी शिकायत है,
ज़र और चांदी है फीके आपके सामने,
आपतो खुदा की मशहूर सी आयत हैं,
लफ़्ज़ों में बयां करना आपको, बेकार सा लगता है,
शायरा को शायरी में उतारना, इत्तेफाक सा लगता हैं,
इश्क़ हम आपसे फरमाये भी तो कैसे,
यहाँ नाचीज़ो का दिल, थोड़ा साफ सा लगता है।
आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपकी नज़रो से कोई बात छुपाए भी तो कैसे?
आपकी सुंदरता पर क़ुर्बान,
कई शायर तैयार हैं,
कयामत भरी ज़ुल्फो पर,
कई मुल्क बेकरार है,
आपकी मुस्कुराहट के गुलाम,
सब बनही चले थे पहले,
आपकी मीठी ज़ुबा पर,
कई जहां क़ुर्बान है।
आपसे अब नाराज़गी जताए भी तो कैसे?
आपकी नज़रो से कोई बात छुपाए भी तो कैसे?
आप हीरा नायाब,
तराशा खुदा का हुआ हो,
महफ़िल में मानो जैसे,
कोई सितारा बना हुआ हो,
चाँद से मिलकर तो,
चंद्रयान भी दिल खो आया था,
मैं तो एक नाचीज़ हूं,
और मेरा चाँद,
मेरे करीब।
आपसे अब नाराज़गी जताएं भी तो कैसे?
आपकी नज़रो से कोई बात छुपाएँ भी तो कैसे?