पिंजरे से बंद मैं
पिंजरे से बंद मैं
पिंजरे से बंद मैं,
आशियाने देख रहा हूँ।
पंछियों का चहचहाना,
कुदरत की वादिया देख रहा हूँ।
खुले आसमां के नीचे,
कहानियाँ सुन रहा हूँ।
तारो की जगमगाहट,
चाँद का नूर देख रहा हूँ।
इस शोर भरी दुनिया में,
खामोशी जब से छाई है,
चेहरों पर मुस्कुराहट,
ज़िन्दगी में चमक, नई सी आयी है।
न सोने पर पाबंदी है अब,
न खेल कूद को ना है,
तरीके नए है पढ़ने के,
और घर में दुनिया समाई है।
उस पुराने चैनल में भी,
तो जान नई सी आयी है,
रामायण, महाभारत और शक्तिमान ने,
टीआरपी जो बढ़ाई है।
बोर होने की वजह से,
कुछ कलाकार भी तो जागे है,
तरह तरह की कारीगरी,
और अनेक लम्हे दोहराए है।
सोचा कभी नहीं था मैंने,
एक पिंजरे में बंद हो जाऊँगा,
कुछ कहानियाँ , कुछ किस्से,
मैं वापस दोहराऊँगा ।
एक पिंजरे से बंद,
आशियाने देख जाऊंगा,
पंछियों का चहचहाना,
और कुदरत की वादिया देख जाऊंगा।
