कुछ इस तरह...
कुछ इस तरह...
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आँखों में काजल, कुछ इस तरह छाया है,
अंधेरे में जुगनू की जगमगाहट का,
एक सुकून सा लाया है।
आपने माथे की बिंदी, कुछ इस तरह लगाई है,
देख कर आपको,
मुझे माँ की याद आयी है।
मुस्कुराहट भरा चेहरा आपका, कुछ इस तरह आया है,
रुके हुए दिल में मानो,
धड़कन सा लाया है।
वो कान की बालियों की कुछ इस तरह आवाज़ आयी है,
सुरीले संगीत की मानो
ध्वनि सी आयी है।
मीठी बोली आपकी कुछ इस तरह आती है,
ज़ुबा पे मानो
कोयल समाती है।
खूबसूरती आपकी, कुछ इस तरह घायल करती है, दिलो को मुतमईन
और नाचीज़ को शायर करती है।
कविता हम ये, कुछ इस तरह लिख लिया करते है, चाँद के बहाने,
हम अपनी शायरा की बात किया करते है।
बस कुछ इस तरह...
बस कुछ इस तरह...