आस पे स्वांस
आस पे स्वांस
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूं
बहुत से ख्वाब जज्ब हैं मेरे सीने में
मैं उनको धरा पे लाना चाहता हूँ
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूँ।
रास्ते हैं तो कहीं मंजिल भी होगी
खुद से नई ऊम्मीद रखना चाहता हूँ
जो मुझको हाशिये पे रखकर खुश थे
उन्हें खुद से मिलाना चाहता हूँ।
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूँ .....
प्यार कमजोर किया करता होगा
मैं इस जुमले को बदलना चाहता हूं
रिश्तों हैं तो उनमें अस्मिता की खनक है
माथे, मांग और हथेली पे रचना चाहता हूं।
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूँ .....
वो कहते हैं बड़ी कमज़र्फ है यह बीमारी
जीत कर उस पार जाना चाहता हूं
बिसातों में शह और मात की चाले होंगी
स्वांस पे आस की विजय चाहता हूं।
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूं
हिसाब कोई अगला-पिछला हो तो बताना
उधारी रख के गुज़र जाना नहीं चाहता हूँ
सड़क पर रोशनी को जो बुझे पड़े हैं दिए
जाते-जाते उनको जलाना चाहता हूं
मैं अभी कुछ और जीना चाहता हूं।