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निखिल कुमार अंजान

Abstract

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निखिल कुमार अंजान

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आरंभ से अंत तक.

आरंभ से अंत तक.

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जिंदगी का सफर

अंजान है डगर

निरंतर चलते जाना है

मंजिल की तलाश मे

खुद रस्ता बनाना है

विपरीत परिस्थितियों मे भी

हमको मुस्कुराना है

मंजिल मिले न मिले

खुद से मिल जाना है

ये वो सफर है जो हमे हमारे

आरंभ से अंत की ओर ले जाता है

अपने रास्ते स्वयं ही बनाते हैं

सही गलत का चुनाव हम पर है

इससे हम अपना विवेक दर्शाते हैं

निर्णय जिनका सटीक होता है 

वही तो कीर्तिमान बनाते हैं 

जिंदगी के इस सफर में

अंजान सी डगर पे कुछ लोग

रास्ते से भटक कर खो जाते हैं 

मजबूत होते हैं जिनके कदम 

वही लोग यहाँ पहचान बनाते हैं

जिंदगी का सफर अंजान है डगर

निरंतर सबको चलते जाना है.



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