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Dayasagar Dharua

Abstract

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Dayasagar Dharua

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आपकी कविता

आपकी कविता

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गाँव की

उन धुल भरी गलियारों में

आपकी कविता झलकती है

उस गलियारे और रास्ते के बारे मे

आपने ही लिखा है की

उसी पथ से आगे जंगल

और जंगल के उस पार का गाँव

माँ की मायका

मामा का गाँव


आपने ही बतलाया था के

गाँव की छोरों में खड़े ताल के पेड़

गाँव की उस धुल भरी रास्ते की

संवादे व कहानीयाँ व किस्से

बादलों को तक पहूँचाते है


आपने उसी कविता में ही

चित्रित कर दिया है

गाँव की नारीयों की गाथा

जो उसी रास्ते से होकर

अपने अपने ससूराल जाते है

और फिर उसी गाँव के रस्ते

उसी गाँव पे

अपना संसार बनाने

नई बहू आती है

जो अपने ननद के साथ

तालाब से नहाई हुई

उसी रास्तों मे अपनी

भीगी पाँव से चिन्ह बनाती

गुजरती है

आखिर मे उसी रास्ते से

चार कंधों के सहारे

वो गाँव की श्मशान की ओर

चली जाती है

उन हर पलों मे

"ग्रामपथ" ही

उसकी असली सख़ी होती है


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