आंसू फांसी झूल गया
आंसू फांसी झूल गया
जब से मेरा ग़ांव क्या छूटा गया साखी
में तो बिल्कुल हंसना-रोना ही भूल गया
अब बहता है,इन आंखों से सूखा आंसू
तेरी जुदाई से आंसू ही फाँसी झूल गया
तू बहुत याद रहता है,ग़ांव मुझे हरदिन
तेरी याद में दिन कटते हैं,मेरे गिन-गिन
पर क्या करें मजबूरी है,काम जरूरी है,
पैसा कमाने के फेर मे,हुआ मोतियाबिंद
पर एकदिन पूरी तरह से लौट आऊंगा
जिस दिन में बुढापे की ओर जाऊंगा
तू ही मेरा पहला और आखरी सनम है
तुझे याद कर आंखे रहती मेरी नम हैं
मेरी खुदा से बस यही आखरी दुआ है,
ग़ांव की माटी में ही निकले मेरा दम है
मेरी जन्नत वही है,मेरी जिंदगी वही है,
ग़ांव तेरे बिन,एकपल जिंदगी नही है
ग़ांव तुझसे सांसो का अटूट नाता है,
तू साखी का एक भाग्य-विधाता है
तू जब एकपल ख्यालों से दूर हुआ,
मेरी रूह ने जिंदगी को न छूआ है!
