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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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आँसू के फूल।

आँसू के फूल।

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तुम चले गए लो हम तुम पर आंसू के फूल चढ़ाते हैं

तुम चले अयोध्या से जैसे लगता ज्यों कोई राम चला

वृंदावन से बंसी लेकर जैसे कोई घनश्याम चला


हम अपने केवल प्रायश्चित गाथा रो-रो दोहराते हैं

तुम आत्मा के आकार या कि उर के सुंदर संवेदन थे

तुम ज्योति तरंगों ले स्पंदित जड़ के प्रति जागृत चेतन थे


हम मला आवरण विक्षेपों के कल्मष ही अभी छुड़ाते हैं

चल दिए ध्यान की गहरी ज्यों घाटी फिर तुम्हें बुलाती है

बैठी समाधि चुपचाप तुम्हारी स्मृति ले सह लाती है


हम बेवस मन को धीरज का ज्यों कोई पाठ पढ़ाते हैं

तुम गए प्यार का सुघर सेतु जो आज कहीं से टूट गया

अनुभूति सिसकती पड़ी कहीं मंगल घट उसका फूट गया


हम अभी कल्पना की मूरत भटके ज्यों कहीं गढ़ाते हैं

शतवार हमारे नमन देव प्रमुदित हो स्वीकार करो

धरती क्या नभ के तारों पर अब तुम अपना अधिकार करो


तुम घूमो बनकर मेघ और हम दीपक राग सुनाते हैं।


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