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JAI GARG

Abstract

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JAI GARG

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आंशिक बेचारा (log 15)

आंशिक बेचारा (log 15)

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सोचा था इस विराने में छेड़ने को मजनू मिल जाता

मिल भी तो फ़ूटे कर्म वह ध्यान दे भी न कह सका


ज़ुबान तो ऐसी सिल गई जैसे ख़ुद ही गूंगा लंगूर हो

अब झिझकते क्या न करते एक ग़म और ले बैठे।


तुम्हीं बताओ क्या करें कही करोना मरीज़ न बन जाए;

खेल मे शर्म से पगला ख़ुद को आईसोलेट न कर बैठे!


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