आँखों से शुरु यह कहानी
आँखों से शुरु यह कहानी
आँखों से शुरु येह कहानी
हर रोज एक नया अध्याय लिख रही हैं
कागज कोरे हैं मगर
आँसूओ की शाहीसे किताबें भरी हैं
'तेरी आँखें देख पहली कविता लिखी थी मैंने
तेरा Reply भी आया था 'वाह वाह' करके
फिर तो और लिखना शुरु किया मैंने
Response मिल रहा हैं क्या बात हैं कहके
अब बातें भी कुछ अनबनी सी है
सब कुछ आधाअधुरा सा है
कहाथा नं तुमसे Block कर या Reply देने
फीर क्यू Message करा था तुमने
हर कविता तुम्हें ही दिखाना चाहता था
फिर भी हर बार क्यूँ पहला view दिया तुमने
यह शिकायत नहीं हैं तुमसे
शुरुवात से कहता रहा काजल लागये रखना
रिश्तों को नजर लगती है परायों की
पर एक बात नी मानना मेरी तुमने
तुम्हारे इस लेहेजेसे नाराज नहीं हूँ मैं
तुम अपनी जगह सही हो
तुम्हारी 'हाँ' या 'ना' इस बातसे भी गीला नही मुझे
मैं ही बिछडता रहा, दूरियां बढाते रहा मैं
सही समय वो बातें कह नहीं पाया,
बस इसी बात का मलाला है मुझे।