आंखों का पानी
आंखों का पानी
छलके, छलके हर आँखों से आंखों का पानी।
जो अनमोल था मोल नहीं है, जल रही जिंदगानी।
आश का पंछी इस डाल उस डाल।
रातें हो गयी काली स्याह विकराल।
दिन भी आये लेकर फिर वहीं मातम बेज़ुबानी।
छलके, छलके हर आँखों से आंखों का पानी।
जो अनमोल था मोल नहीं है, जल रही जिंदगानी।
डूबते सूरज की किरणें ज्यों दूर तक आश बंधाये।
तूफान हो हलचल मन में, शांत हो फिर घिर आये।
कभी दुख के आग में तपाया।
कभी गम के समंदर में डुबाया।
मैं पान,बेर के कांटों संग फड़ फड़ वश में नहीं रवानी।
छलके, छलके हर आँखों से आंखों का पानी।
जो अनमोल था मोल नहीं है, जल रही जिंदगानी।
जीवन रस आंसू बन ढरके बदन बसन तर हो रहे।
भभक रहा फफक रहा मन नजर ना जो भीतर हो रहे।
ज्यों पानी बिन मीन अकुलाये।
ज्यों चिंगारी से दावानल सुलग आये।
जल रही मन भीग रही तन बेदर्द ये जीवन कहानी।
छलके, छलके हर आँखों से आंखों का पानी।
जो अनमोल था मोल नहीं है, जल रही जिंदगानी।