आंखें जब भी बंद करूँ
आंखें जब भी बंद करूँ
1 min
445
आंखें जब भी बंद करूँ,
बस तुम नज़र आते हो,
मन के इस मंदिर में,
बस तुम मुस्काते हो।
कहते हो,क्या घबराना,
मैं हूँ न संग तुम्हारे,
तुफानो में भी तुम
प्रबल वेग से चलते जाना।
जीत जाओगे तुम,
सब ये धैर्य परीक्षा है,
सशक्त बस तुम बनो,
यही मेरी इच्छा है।
कितने भी शूल हो,
राहो में तेरी,
बस यूं ही तुम,
चलते जाना।
मुस्काते हुए,
हर पथ पर,
बस कुछ,
सीखते जाना।
चल देती हूं,
मैं फिर,
सशक्त कदमों से,
और सशक्त होने को।
तेरी मुस्कुराहट,
अधरों पर लिए,
खुद की पहचान,
बस बनाने के लिए।।