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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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आंधी

आंधी

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आंधी ने उड़ते-उड़ते कहा

 देखो पक्षीराज

 तुम्हारा खेल खत्म हुआ।


अब कुहराम मचेगा ।

हर कोई मेरा अट्टहास सुनेगा।

 क्या कर सकोगे सामना।

 मैं हूं आंधी, कोई आम ना।

 इस पर पक्षीराज का जवाब था   । 


न हो मेरी मित्र 

ना ही हो दुश्मन ।

 कुछ पलों की साथी हो ।


क्या अच्छी यादों की अभिलाषी हो।

 तो आओ मिलकर दौड़ लगाएं।

 कभी तुम आगे तो कभी मैं आगे। 

मिलकर खूब खिल खिलाएं। 


आंधी को विचार पसंद आया।

लेकिन अगले ही क्षण 

विचारों में फेर आया। 

 मेरी शक्ति का क्या?

 मेरे अस्तित्व का क्या? 

मिला है मौका तो एसे क्यूँ गँवा दू।

सबकी यादों में अपनी जगह न बना लूँ। 

कौन मुझसा सबको बरबाद करेगा। 

कौन दहशत का बीज भरेगा।

 प्रचंड वार की दिवानी हो।

 विचारों से बैर लाती हो।

क्यों नहीं खुद को सबके संग चलाती हो।

अस्तित्व से डरी हो इसलिए डराती हो।

खुशियाँ क्यों नहीं सजाती हो।

 

थोड़ा सीधा सोचकर देखो।

सोचो तुमने विंडव्हील की रफ्तार बढ़ाई ।

तुम ही घर- घर में बिजली लाई ।

तुमसे ही घर- घर में खुशियाँ छाई।

फिर सोचो तुम बरखा लाई।

खेत-खलिहान हरा बनाई।

अब कहाँ तुम्हे कोई जाने देगा ।

सुख की चाबी बनकर तुम आई।

रोज ही तुम्हारा स्वागत करेगा।

आंधी को थी बात समझ में आई। 

छाई निराशा दूर भगाई।

अब दौड़ी थी आंधी लेकिन ।

थी अविनाशी भाव लिए ।

ओंस की बूँद जैसी मचलती

थी पवित्र भाव लिए।


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