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Pradeep Sahare

Comedy

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Pradeep Sahare

Comedy

आम आदमी

आम आदमी

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मेरा दोस्त,

नाम रामभाया ।

सुबह सुबह,

घर आया ।

आते ही दिमाग का,

भेजा फ्राय किया,

दही के साथ खाया।

बोलने लगा,

"सुन मेरे,

ओ भाया...

आम आदमी ।

ज़िंदा है या गया मर,

या हो गई उसकी,

नज़र कमजोर ।

आसमान छू रहें,

डीजल,गैस,पेट्रोल के दर।

सब्जी, दाल ला रहा,

आधी  आधी घर ।

फिर भी क्यों?

क्यों.. क्यों हैं मौन ।"

मैंने थोड़ा,

पास बिठाया ।

कंधे पर हाथ रखा,

फिर समझाया ।

" पता है,

 आम आदमी है कौन,

क्यों हैं मौन ।"

वह बोला नहीं ।

मैं, बोला,

तो सुन भाई,

" देखा तुमने !

ससुराल जाता जमाई।

एक बीबी,दो बच्चे ।

दो बच्चे, प्यारे सच्चे।

साथ में दो बँग ।

बाईक पर शुरु,

होती भागम भाग ।

आगे बच्चा,

उसके हाथ बँग ।

पिछे बच्चा,

उसके पिछे बीबी,

पिछे की बँग पर,

रखकर हाथ ।

बीबी सम्हालती,

बार बार अपनी बँग ।

पिछे का बच्चा,

मुंडी बाहर करने की,

कोशिश करता बार बार।

चिड़ चिड़ाता,

फिर हो जाता मौन ।

यही तो है,

आम आदमी की कौम।''

रामभाया,

जो समझना था,

सब समझ गया ।

फिर धिरे से,

खिसक गया ।



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