आम आदमी
आम आदमी
मेरा दोस्त,
नाम रामभाया ।
सुबह सुबह,
घर आया ।
आते ही दिमाग का,
भेजा फ्राय किया,
दही के साथ खाया।
बोलने लगा,
"सुन मेरे,
ओ भाया...
आम आदमी ।
ज़िंदा है या गया मर,
या हो गई उसकी,
नज़र कमजोर ।
आसमान छू रहें,
डीजल,गैस,पेट्रोल के दर।
सब्जी, दाल ला रहा,
आधी आधी घर ।
फिर भी क्यों?
क्यों.. क्यों हैं मौन ।"
मैंने थोड़ा,
पास बिठाया ।
कंधे पर हाथ रखा,
फिर समझाया ।
" पता है,
आम आदमी है कौन,
क्यों हैं मौन ।"
वह बोला नहीं ।
मैं, बोला,
तो सुन भाई,
" देखा तुमने !
ससुराल जाता जमाई।
एक बीबी,दो बच्चे ।
दो बच्चे, प्यारे सच्चे।
साथ में दो बँग ।
बाईक पर शुरु,
होती भागम भाग ।
आगे बच्चा,
उसके हाथ बँग ।
पिछे बच्चा,
उसके पिछे बीबी,
पिछे की बँग पर,
रखकर हाथ ।
बीबी सम्हालती,
बार बार अपनी बँग ।
पिछे का बच्चा,
मुंडी बाहर करने की,
कोशिश करता बार बार।
चिड़ चिड़ाता,
फिर हो जाता मौन ।
यही तो है,
आम आदमी की कौम।''
रामभाया,
जो समझना था,
सब समझ गया ।
फिर धिरे से,
खिसक गया ।
