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Minal Aggarwal

Tragedy

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Minal Aggarwal

Tragedy

आखिरी ट्रेन

आखिरी ट्रेन

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बेशक मेरे शहर के 

स्टेशन से गुजरती वह 

आखिरी ट्रेन थी पर 

क्या कभी मुड़कर वापिस

मुझ तक आएगी 


मैं इंतजार करूं इसका 

यहीं कहीं कोई अपने लिए 

महफूज स्थान तलाशकर 

जैसे कि लकड़ी की कोई साफ सुथरी बेंच 


यह तो मुझे लग रहा है कि वह

शायद वापिस लौटने में 

सदियों लगाए 

इस बेंच को ही फिर शायद 

मुझे बनाना पड़े अपना स्थाई 


घर 

यहीं रहना 

यहीं उठना बैठना 

यहीं सोना 

यहीं खाना पीना 

यहीं हंसना रोना 

यहीं जो खो गया 


मेरे हाथों से एक बर्फ की 

डली की तरह पिघलकर

सोने की मिट्टी बनकर कहीं दफन हो 

गया 


उसे दोबारा वापिस पाने की आस में 

खुद को जिंदा रखना 

ट्रेन स्टेशन पर 

दिन में खामोशी है 

रात में सन्नाटा 


क्या यह मायूसी का कफन 

उतरेगा कभी 

यादों की लाश को जिंदा 

करते हुए


क्या वह मेरी रूह से गुजरी

आखिरी ट्रेन कभी 

वापिस लौटेगी 

मेरे दिल की पटरी पर 

दस्तक देती हुई 


खट खट खट खट 

शोर मचाती हुई 

अपनी जोश भरी 

पुरजोर आवाज में 


छुक छुक छुक छुक कि

यह मैं आ गई वापिस

दौड़कर 

इंतजार की घड़ियां खत्म 

मैं लौट आई 


इस जीवन में कुछ भी 

असंभव नहीं 

तू एक बार सोचकर 

देखना तो शुरू कर 

फिर देख 


कैसे वह आखिरी ट्रेन 

फिर लौट आती है 

तेरे जीवन की पटरी पर।


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