नारी भी तो आखिर इंसान है...
नारी भी तो आखिर इंसान है...


अरमानों का आसमान उर में समेटे,
परम्परा और संस्कार की चादर ओढ़े,
हर दिन मुस्कुरा कर निकलती है वो।
बातों से अपनी मन जीतने वाली,
सबका ख्याल रखती है वो।
उड़ना था उसको खुले आसमान में,
मर्यादा का भान रखती है वो।
मन में जिसके बातों के भंड़ार,
बस होठों पे मुस्कान रखती है वो।
समंदर में उठती लहरों की भाँति,
भावनाओं के तूफान रखती है वो।
जननी है वो और दुर्गा भी है,
सृजन और विनाश की धार रखती है वो।
स्नेह, सम्मान के भाव हो ,
नारी भी तो आखिर इंसान है!
बस इंसानियत की उम्मीद रखती है वो।