आखिर क्यों ?
आखिर क्यों ?
दरार क्यों पड़ गई
दीवार क्यों उठ गई
नाज़ था जिस पर
नजर क्यों लग गई उसे
मंज़िलें जुदा होने से
जुदा क्यों हो गए साथी
बदल क्यों गए राही
रह कर साथ कुछ लम्हें
भूल क्यों गए हमें
भूले अतीत की तरह
शिकवे उसे भी थे
शिकवे मुझे भी थे
भूल तो शायद किसी की न थी
फिर दरार क्यों पड़ गई
दिवार क्यों उठ गई
