आखिर क्यों
आखिर क्यों
फिर तेरी यादों का पहरा,
फिर मेरे दर्द ने दी दस्तक।
क्यों तुझसे जुड़ा होकर भी
तुझमें समाया हूँ मैं।
मेरी वफाओं का
बस यही तो दोष था कि,
किसी बेवफा की वफादार थी।
फिर क्यों निकल नहीं जाती
मेरे ज़हन से उसकी यादें।
क्यों आ जाती हैं
हर रात पहरे पर,
क्यों जगा जाती है,
दर्द मेरे दिल का।
आखिर क्यों ?