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वक़्त

वक़्त

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फिर वहीं ले आया मुझे मेरा वक़्त।

जहां से ले गया था आगे मुझे।।

मैने सोचा ना था, तुम उस वक़्त में साथ ना होगी मेरे,

जिस वक्त मेरा वक़्त मेरा न होगा।।


फिरता हूँ वक़्त के साथ दर बदर की ठोकरों में,

जाने किस वक़्त ये वक़्त मुझे थामे मंज़िल पाने के लिए।।

अब इस वक़्त का एतबार नहीं मुझे,

इससे अब कोई इकरार नही मुझे।।

बहुत सिखाया है वक़्त ने दुनिया को परखना।।

अब तो इस वक़्त को खुद परखना है मुझे।।

क्योंकि फिर वहीं ले आया है वक़्त मुझे।।



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