अधिवक्ता संजीव मिश्रा
Tragedy
आखिर कब तलक उसकी यादें पीछा छोड़ेंगी,
शायद जब तलक मेरी सांसे जीना नहीं छोड़ेंगी।
कान्हा
सर्द हवाएं
कभी ख़ुश तो कभ...
मेरा ग़म
खुद को सँभालूँ या अपनों को सँभालूँ मैं , समझ में कुछ नहीं आता । खुद को सँभालूँ या अपनों को सँभालूँ मैं , समझ में कुछ नहीं आता ।
स्वजनों से मिलकर, सुकूँ पा रहे हैं कोरोना काल में, फ़िर से मुस्का रहे हैं। स्वजनों से मिलकर, सुकूँ पा रहे हैं कोरोना काल में, फ़िर से मुस्का रहे हैं।
अनेक युद्धों के घावों को देखो, हमें यह युद्ध का मतलब समझाती है, अनेक युद्धों के घावों को देखो, हमें यह युद्ध का मतलब समझाती है,
बीमारी लेकर आई संग बेकारी, भुखमरी का जाल बीमारी लेकर आई संग बेकारी, भुखमरी का जाल
जीने का हक इनको भी हो दुनिया में पहचान मिले। जीने का हक इनको भी हो दुनिया में पहचान मिले।
या खुदा यहीं दास्तान ए ज़िन्दगी सिर्फ मेरे लिए लिखी है। या खुदा यहीं दास्तान ए ज़िन्दगी सिर्फ मेरे लिए लिखी है।
जन्म से ही नहीं थी मैं कभी भी बच्चा थी मैं एक कन्या जन्म से ही नहीं थी मैं कभी भी बच्चा थी मैं एक कन्या
घर भी नहींं पहुंचे अपने मजदूर रास्ते में ही हो गए उनसे दूर। घर भी नहींं पहुंचे अपने मजदूर रास्ते में ही हो गए उनसे दूर।
जिससे आशा मिली निराशा सब स्वारथ के चोर। निकल पड़ा हूँ दृढ़ इच्छा ले अपने गाँव की ओर।। जिससे आशा मिली निराशा सब स्वारथ के चोर। निकल पड़ा हूँ दृढ़ इच्छा ले अपने ...
थोड़ी हिम्मत तो करो माँ...मुझे बचा लो माँ मुझे बचा लो!! थोड़ी हिम्मत तो करो माँ...मुझे बचा लो माँ मुझे बचा लो!!
जो खो चुके हैं जीवन अपना मेरा शत् शत् नमन उनको। जो खो चुके हैं जीवन अपना मेरा शत् शत् नमन उनको।
इस बेटी को आखिर न्याय देने वाला कौन है। इस बेटी को आखिर न्याय देने वाला कौन है।
कैसे भूलें उस चीख की ,निर्भया की तकलीफ़ को। कैसे भूलें उस चीख की ,निर्भया की तकलीफ़ को।
क्योंकि मैं देश भक्त हूँ, नायक हूँ, कलयुग में पला दुःसाशन सा खलनायक हूँ। क्योंकि मैं देश भक्त हूँ, नायक हूँ, कलयुग में पला दुःसाशन सा खलनायक हूँ।
सड़कों पर घटित वहशीपन के दानवों की दरिंदगी, आत्मा पर लगी अचेतना की दुर्गन्ध भरी फँफूदी, सड़कों पर घटित वहशीपन के दानवों की दरिंदगी, आत्मा पर लगी अचेतना की दुर्गन्ध भर...
बलशाली सत्ता के मद में , झूम रहे अलमस्त हैं। बलशाली सत्ता के मद में , झूम रहे अलमस्त हैं।
पर दूर डगर था सफर बड़ा! और गोद में था मासूम पड़ा! पर दूर डगर था सफर बड़ा! और गोद में था मासूम पड़ा!
प्रगति के नायक जियें जीवन सरल सदैव- जिसके अधिकारी श्रमिक पाते नहीं सम्मान। प्रगति के नायक जियें जीवन सरल सदैव- जिसके अधिकारी श्रमिक पाते नहीं सम्मान।
आखिर कब ये महामारी जाएगी और कब वो गरीब फिर से मुस्कुराएगा। आखिर कब ये महामारी जाएगी और कब वो गरीब फिर से मुस्कुराएगा।
जिन्दा जला के कर देना चाहिए तुम्हे राख़, फिर चुनते रहना अपनी बोटी अपनी खाक। जिन्दा जला के कर देना चाहिए तुम्हे राख़, फिर चुनते रहना अपनी बोटी अपनी खाक।