आजकल
आजकल
प्रतीक जीवंत हो उठे हैं
और जीवंतता इतिहास की
तरफ सरक रही है
अजीब दृश्य है
इतिहास उमड़ आया है
और बर्तमान अंतर्ध्यान में है।
परम्पराओं का अंतर्मन
बोझिल हो चला अपने आप से
विश्वास और अविश्वास के बीच
भावनात्मक रेखाएँ
यथार्थ से दूर चली गयी हैं
अब कहीं ठहरें
इस शक्तिकाल में ही
तो आदमी का विश्वास देखिये
देखिये जैसे माँ थी
है नहीं है
आप अनुभव कर सकते हैं
आदमी का विश्वास
अतीत में भी,वर्तमान में भी
विकल्प है
उसके प्रेम में अभिभूत होने का
और उसकी याद में खो जाने का
वो थीं हैं, और हैं तो हैं।