आज़ादी चाहिये मुझे
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आज़ादी चाहिये मुझे
इन तमाम रस्मों -रवायतों से
जो औरत को आदमी से
कमतर समझती हैं
आज़ादी चाहिये, मुझे उन
तमाम बंदिशों से
जो औरत को अबला समझती हैं
आज़ादी चाहिये,
मुझे उन सब ढकोसलों से
जो दिखावा करती हैं
आदमी -औरत की बराबरी का
आज़ादी चाहिये मुझे
अपनी पहचान बनाने
के लिये...