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John Nagarkar

Romance

3.7  

John Nagarkar

Romance

आज मुझे गीला होना है

आज मुझे गीला होना है

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एक पल वो याद आया

बिजली चमकी बादल बरसे

बरसों पहले गीला बदन मैंने पाया

आज फिर मुझे गीला होना है

तुम्हें बांहों में लेकर

सूखा मन यह धोना है

आज मुझे गीला होना है

 

आज सर्द भी काँप उठी तुम्हारे

गरम सांसों से

चांदनी भी छुप गयी तुम्हारे

मुस्कुराहटों कि चमक से

सब कुछ हो रहा है अलग यहाँ

तुम हो यही पर मैं हूँ कहाँ

आज मुझे गीला होना है यहाँ

 

ये जलती यह बूंदे

यह ठंडी यह हवा

यह गीला यह मौसम ले जान मेरा

आज फिर जीना है, आज फिर मरना है

आज फिर बांहों में तुम्हें लेना है ज़रा

आज मुझे गीला होना है यहाँ

 

तुम्हारी जुल्फो कि लहर से मचलती यह हवा

तुम्हारी नज़रों के कहर से चमकती यह काली घटा

बादलों से छुप कर बूंदे यह बरस रही

तुमसे शर्मा कर आज चांदनी भी छुप गयी

आज मुझे गीला होना है और कुछ नहीं


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