आज की नारी
आज की नारी
पल्लू उतार कर हम नारियों ने, दफ्तर के बैग को, थामा है
कुछ लोग कहे इसे बेशर्मी, कुछ लोग कहे नया ज़माना है।।
हर युग में, सामाजिक बंधन की बेड़ियों में हमें बाँधा गया है
ज़माने की ऐसी सोच, आखिर क्यों? हम पर ही होती लागू
हमें भी तो अपनी पहचान बनानी है आसमान को छूना है।।
क्या स्त्रियों का, केवल घूंघट में रहना ही संस्कार, आदर्श है
समाज की ऐसी सोच और ये बंधन, अब हमें स्वीकार नहीं
कब तक दहलीज़ तक बंधे रहें, हमें भी बाहर निकलना है।।
आज की नारी हम, मान मर्यादा संग आगे बढ़ना सीखा है
आत्मसम्मान, स्वाभिमान से पार करते हैं हर उतार-चढ़ाव
हैं कहीं भी कमज़ोर न हम, साबित करके हमें दिखाना है।।
सती नहीं, देवी नहीं, गर्व है, हम नारी हैं नारी बन ही रहना है
प्रतिबंध की हर दीवार को हिम्मत और हौसलों से तोड़कर
बिना सहारे अपने दम पे हमें एक नया इतिहास बनाना है।।
तुम नारी हो, तुमसे ना होगा कुछ, व्यर्थ यह सब कहना है
कौन सा ऐसा क्षेत्र जहाँ नारी ने अपना वर्चस्व ना दिखाया
अब सोच बदल समाज की, हमें खुद को आकार देना है।।
हमारी इस उड़ान को बेशर्मी कहे ज़माना, हमें फिक्र नहीं
बदलते स्वरूप को, स्वीकार करना पड़ेगा समाज को भी
बहुत हो चुका शोषण हमारा अब और नहीं हमें सहना है।।
बंधन में रहकर भी, हर किरदार में ढलना हमने सीखा है
माँ, पत्नी, बेटी और बहन रूप में, हर कर्तव्य निभाया है
अपने सपनों को साकार रूप देना, हमारा भी अधिकार
ज़माने का डर नहीं हमें, शक्ति जगा बस आगे बढ़ना है।।