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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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आज देश बदल रहा है

आज देश बदल रहा है

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आज देश बदल रहा है

वाकई देश बदल रहा है।

पाश्चात्य संस्कृति का,

वो अनुसरण कर रहा है

आज संस्कारो के साथ,

कपड़े भी कम हो रहे हैं

देश का आज,

चीरहरण हो रहा है

आज देश बदल रहा है।

टिकटोक चलाते हैं युवा

समय को गंवाते हैं युवा

आज युवा समय का,

बेरहमी से कत्ल कर रहा है

बड़े-बड़े शहरों में आज

कुंवारे रहते है साथ-साथ,

देश मे लिविंग टुगेदर का,

आज चलन हो रहा है

आज देश बदल रहा है।

रात को जागना

सवेरे देरी से उठना

आज मूलभूत प्रकृति

हिन्दवासी खो रहा है।

एकल परिवार में रहना

न बनने पर तलाक लेना

आज देश मे आम हो रहा है।

आज देश बदल रहा है

इस बदलाव की फ़िज़ा मे

वो फूल मुरझा गया है,

जो हमे विरासत में मिला है

आज हिन्दवासी, 

पुरातन संस्कृति को खो रहा है।

अब दुष्परिणाम दिखने लगे है

दरिया भी आजकल रोने लगे है

संस्कृति के खोने से,

हमारा नैतिक पतन हो रहा है

आज देश बदल रहा है।

बदलाव अच्छा हो तो,

बहुत ही अच्छा लगता है

शूलों की महक से,

देश टूटा आईना हो रहा है

बुरे संस्कारो को त्याग दो

देश मे सच्चा बदलाव दो

दीपक ही दीपक लगाने से

देश जगमग रोशन हो रहा है

बुराई का प्रतीक ये अंधेरा,

आज देश से गायब हो रहा है

आज देश बदल रहा है।

उन्नति के मार्ग पर चल रहा है

फूलो के मार्ग पर चलने से

देश महकता गुलिस्तां हो रहा है

आज वाकई में देश बदल रहा है।



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