आज भी
आज भी
दिल के एक हिस्से में,
बन धड़कन आज भी बसते हो।
तस्वीर मेरी तुम भी तो,
सजा कर किताबों में रखते हो।
विरह ताप अब श्रृंगार मेरा,
बिंदिया सी भाल पर सजते हो।
रहने दो मुझे सोना ही,
कुंदन इसे अब क्यों करते हो।
मिलेंगे फ़िर जीवन धारा में
इस कदर क्यों आहें भरते हो।

