आईना इक बार देखो तुम जरा !
आईना इक बार देखो तुम जरा !
चाँद का दीदार कर लो तुम जरा ।
आइना इक बार देखो तुम जरा ।।
शोखियाँ खोने न पाएँ हुस्न की ;
इक कली होकर जो चटको तुम जरा...।
बस्तियाँ सदमे में हैं कल रात से ;
मुस्कुराकर रौशनी दो तुम जरा ।
जिंदगी की ये ग़ज़ल बन जायेगी ;
राब्ता मिसरों में दे दो तुम जरा ।
चाँद गर छत पर दिखे मुश्किल न हो ;
रात छत पर यूँ न टहलो तुम जरा ।
